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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।

अथवा
'रीतिकालीन अधिकांश काव्य प्रवृत्तियाँ* बीज रूप में पूर्ववर्ती साहित्य में विद्यमान थीं इस कथन पर सप्रमाण विचार प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
रीतिकालीन काव्य में शृंगार की प्रवृत्तियों को समझाइये |

उत्तर -

रीतिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियाँ

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन करते समय रीतिकाव्य की सीमा रेखा 1700 से 1900 वि0 तक मानी है। रीति से आचार्य शुक्ल का मतलब काव्य रीति से था। इस युग में अधिकांश कवियों ने काव्य रीति को अपना मुख्य विषय बनाया था। पहले उन्होंने रस, छन्द, अलंकार या नायिका भेद का पद्य में विवेचन किया और बाद में उनके सरल उदाहरण प्रस्तुत किये। रीतिकाल की अधिकांश रचना इसी पद्धति को लेकर चली है। रीतिकाल के प्रतिवाध विषय दो थे- काव्यशास्त्रियों के नियम का पालन तथा सामन्ती जीवन का चित्रण | इस युग के अधिकांश कवि दरबारी विराज स्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के छोटे-बड़े राजाओं के आश्रित थे और उनको ध्यान में रखकर ही काव्य रचना करते थे। किसी अच्छे आश्रयदाता की खोज उस युग के कवि की प्रमुख समस्या थी। भूषण का जैसा सौभाग्य बहुत कम कवियों को प्राप्त था। देव जैसे प्रतिभाशाली कवि जीवन भर आश्रयदाताओं की तलाश में भटकते रहे। उस समय राजदरबार में आश्रय प्राप्त करने के लिए आचार्यत्व की आवश्यकता थी। उसके लिए कवियों ने काव्यात्मक का सहारा लिया। साहित्य संगीत आदि कलाओं में रुचि रखना सामन्तों व राजाओं की प्राचीन परम्परा थी। ये लोग स्वयं इन कलाओं का ज्ञान रखते थे। उनकी सन्तानों को भी इसकी शिक्षा दी जाती है साहित्यशास्त्र की जरूरत इस कार्य के लिए भी होती थी। उदाहरणार्थ केशवदास जी ने कविप्रिया तथा रसिकप्रिया की रचना अपने आश्रयदाता की प्रिय गायिका को आर्य शिक्षा देने के लिए ही की थी। इस विवेचन के आधार पर इस युग के साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) सामन्ती अभिरुचि - यह काल सामन्ती अभिरुचि का काल रहा है। इसी कारण इस काल का समस्त साहित्य आश्रयदाताओं की रुचि के अनुकूल रचा गया है। यों तो हर युग में प्रेम शृंगार की प्रधानता रही है, किन्तु रीतिकाल के साहित्य में पतित सामन्तकालीन विलास और शृंगार की प्रधानता है। शुक्लजी ने ठीक ही लिखा है कि तुलसीदास ने सीता के प्रति राम के प्रेम को कर्तव्य मार्ग में आगे बढ़ाया है। जबकि रीतिकालीन कावि का नायक अन्तःपुर में ही संयोग तथा वियोग की सारी दशाओं का अनुभव करता है। वास्तव में उनके प्रेम के पीछे विलास की इच्छा अधिक है और प्रेम का भाव कम है। उसका प्रेम सामाजिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं रखता है। उनके प्रेम की मुख्य प्रेरणा परकीया नायिका है, अपनी पत्नी नहीं।

(2) आचार्यत्व प्रदर्शन की प्रवृत्ति
- इस युग के सभी कवियों ने आचार्यत्व बनने का प्रयत्न किया और रस, अलंकार आदि काव्यांगों पर ग्रन्थ रचना की। इन रचनाओं में मौलिकता का सर्वथा अभाव रहता था। उन्होंने मौलिकता केवल नये भेदों के नामकरण में ही दिखाई है। जैसे केशवदास ने शृंगार के प्रच्छन्न शृंगार और प्रसंग श्रृंगार नामक दो भेद किये। काव्यशास्त्र इन साहित्य का आवरण मात्र है, मुख्य विषय नहीं है।

(3) श्रृंगारिक प्रवृत्ति - इस साहित्य में श्रृंगार की प्रधानता है। श्रृंगार के भावों ने उस काल के धार्मिक साहित्य तक को प्रभावित किया। कृष्णभक्ति के इस साहित्य में माधुर्य भावना का बहुत प्रचार हुआ है और कृष्ण भक्ति के नाम पर घोर शृंगारी काव्य की रचना हुई। राम भक्ति का मार्ग, मर्यादा और भक्ति का मार्ग था। उसमें प्रेम लीलाओं का स्थान नहीं था, किन्तु इस युग में रामभक्ति में भी माधुर्य-भाव प्रवेश हुआ और कृष्ण के समान राम की भी प्रेम-लीलाओं का वर्णन किया जाने लगा।

(4) नारी सौन्दर्य चित्रण - श्रृंगारकालीन काव्य में नारी के रूप चित्रण को बहुत महत्व दिया गया है। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि श्रृंगारकालीन काव्य में 'नारी' कोई व्यक्ति या समाज के संगठन की इकाई नहीं है, बल्कि सभी प्रकार की विशेषताओं के बन्धन से यथासम्भव मुक्ति विलास का एक उपकरण मात्र है। देव ने कहा है

कौन गनै पुरवन नगर कामिनी एकै रीति।
ये देखत हरै विवेक को चित हरै करि प्रीति ॥

इससे इतना स्पष्ट है कि नारी कि विशेषता इनकी दृष्टि में कुछ नहीं है, केवल पुरुष के आकर्षण का केन्द्र भर है। " शृंगारकाल में नायिका भेद निरूपण में भी कवि सर्वत्र रूपवती नायिका का ही वर्णन करता है

मानो स्त्री छव मूरती मोहनी। श्रीधर ऐसी बखानत नायिका ॥

इस प्रकार कहने का तात्पर्य यह है कि श्रृंगारकाल में रूपवती नारी विलास का साधन है, जीवन का एक विश्राम स्थल है, जहाँ सभी प्रकार की दौड़-धूप से भ्रान्त हो भ्रान्त हो पुरुष नारी की मधुर अंचल छाया में बैठकर अपने दुःखों एवं पराभावों को भूल जाता है। शृंगारकालीन कवि नारी के सामाजिक रूप, गृहलक्ष्मी एवं मातृ रूप का परिक्षण नहीं कर सका, वह तो परकीया नायिका के वर्णन में ही अधिक अनुराग प्रदर्शित करता रहा। विलास की साधन नारी के रूप-सौन्दर्य के प्रति कवि की आसक्ति को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उनकी रूग्ण भावना का द्योतक स्वीकार किया है।

"चमक चमक, हाँसी ससक, लपक झपक लपटानि।
एजिहि रति, सो रति मुकति और मुकति अति हानि ॥

युग के नैतिक आदर्शों की अनुमति होने के कारण शृंगार काल में काम प्रवृत्ति अभिव्यक्ति के लिए पूर्ण स्वच्छन्दता थी। आध्यात्मिक आवरण में ही शृंगारिक कविता न होती थी, वरन् स्वतन्त्र रूप में भी होती थी। कवि लोग राजाओं की कुत्सित प्रवृत्तियों को सन्तुष्ट करने के लिए नग्न शृंगार का चित्रण करते थे। परन्तु इस निर्बाध वासना तुष्टि का एक दुष्परिणाम भी हुआ, वह यह कि काम जीवन का अंतरंग साधक तत्व न रहकर बहिरंग साध्य बन गया। इसलिए इस काल की रीतिबद्ध कविता शृंगारिकता मे प्रेम की एकनिष्ठता न होकर वासना की झलक ही मिलती है और उसमें भी सूक्ष्म आन्तरिकता की अपेक्षा स्थूल शारीरिकता का प्रधान्य है। प्रेम की भावना हृदय की प्रवृत्ति है, जो एकोन्मुखी होती है, किन्तु विलास या रसिकता उपयोग की भावना है जो अनेकोन्मुखी होती है। इसी कारण प्रेम में तीव्रता होती है, रसिकता में केवल तरलता। रीतिबद्ध प्रतिनिधि कवि बिहारी, देव, मतिराम आदि रसिक ही थे, प्रेमी नहीं। इन्होंने बाह्य स्थूल सौन्दर्य की अभिव्यक्ति की है। उसके काव्य में मन के सूक्ष्म सौन्दर्य का और आत्मा के सात्विक सौन्दर्य का प्रायः बिल्कुल ही अभाव है। परन्तु जहाँ तक रूप अर्थात् विषयगत सौन्दर्य का सम्बन्ध था वहाँ इन कवियों की पहुँच बहुत गहरी थी। एक ओर बिहारी जैसे सूक्ष्मदर्शी कवि की निगाह सौन्दर्य के बारीक संकेत को पकड़ सकती थी, तो दूसरी ओर मतिराम देव, पद्माकर जैसे रीतिबद्ध कवियों के कवि रूप-सौन्दर्य का वर्णन करने में पूर्ण रूप से रमने लगे। उदाहरण के लिए, नयनों में कटाक्षी और चंचलता का इतना सुन्दर वर्णन विद्यापति को छोड़कर प्राचीन साहित्य में दुर्लभ है।

(5) काव्य रूप और शिल्पगत प्रवृत्तियाँ - प्रायः यह कहा जाता है कि रीतिकाल का महत्व उसके काव्य रूप में है और काव्य की कसौटी पर ही उसका सही मूल्यांकन हो सकता है। इस सम्बन्ध में शुक्ल जी पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनकी दृष्टि नैतिक मूल्यों की प्रधानता के लिए थी और अपने इसी नैतिकतावादी दृष्टिकोण के कारण वे रीतिकालीन काव्य का सही मूल्याँकन नहीं कर सके हैं।

रीतिकाल का वर्णन करते हुए स्वयं शुक्ल जी ने लिखा है कि हिन्दी काव्य अब पूर्ण प्रौढ़ता पर पहुँच गया था।.रीति ग्रन्थों के कर्त्ता भावुक, सहृदय और निपुण कवि थे उनके द्वारा बड़ा भारी कार्य यह हुआ कि रसों (विशेषतः शृंगार रस) और अलंकारों के बहुत ही सरस और हृदयग्राही उदाहरण अत्यन्त प्रचुर परिणाम में प्राप्त हुए, किन्तु उनकी आपत्ति थी कि "प्रकृति के अनेकरूपता की जीवन की भिन्न-भिन्न चिन्त्य बातों का तथा जगत के नाना रहस्यों की ओर कवियों की दृष्टि नहीं जाने पाई। वाग्धारा बंधी हुई नालियों में प्रवाहित होने लगी जिससे अनुभव के बहुत से गोचर और अगोचर विषय रससिक्त होकर सामने आने से रह गये। काव्यशास्त्रीय आधार पर रीतिकालीन साहित्य का मूल्यांकन करते समय हमें शुक्ल जी के इस मूल्यांकन को ध्यान में रखना चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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